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 केरल के लोगों को बड़ा अभिमान है कि वे सबसे साक्षर हैं। लेकिन कथित रूप से सबसे साक्षर प्रदेश के लोगों की  बुद्धिमत्ता देखिए। पालक्काड़ विधानसभा सीट से भाजपा ने देश के सबसे विज़नरी इंजीनियर, कोंकण रेलवे को संभव बनाने वाले कर्मठ पुरुष, दिल्ली की परिवहन संस्कृति को बदल देने वाले श्रीधरन के बदले एक जिहादी शफ़ी परमबिल को चुना। पालक्काड़ एक हिन्दू बहुल क्षेत्र है लेकिन आत्मघाती सेक्यूलरिज्म के आगे वह असहाय है। 


बंगाल में ममता की जीत के साथ मारकाट शुरू हो गई है। अभिजीत सरकार की हत्या कर दी गई। कई बीजेपी कार्यालय जला दिए गए। अब आने वाले दिनों में बीजेपी कार्यकर्ताओं की भयावह हत्याओं का नया दौर शुरू होगा। पहले भाजपा के सैकड़ों लोग मारे गए अब फिर सैकड़ों मारे जाएंगे। हिन्दू पलायन का नया आक्रान्तकारी युग प्रारंभ होगा। पहले से ही हजारों गांव कस्बे छोड़कर भाग रहे हिन्दूओं की संख्या बढ़ती जाएगी। वहां किनका आधिपत्य होता जाएगा, लिखना ज़रूरी नहीं है। ठीक कश्मीर माडल की तरह बंगाल आगे बढ़ेगा। 


केरल पहले से ही जिहादियों और ईसाई मिशनरियों के कब्जे में है। आंध्र में जगन मोहन रेड्डी ने पच्चीस प्रतिशत हिन्दुओं को धर्मान्तरित कर दिया है। तमिलनाडु धीरे-धीरे उसी राह पर आगे बढ़ रहा। चप्पे-चप्पे पर चर्च बन रहे। पुराने हजारों मंदिर भग्न हो रहे। उनका गर्भगृह सूना है। उत्तर-पूर्व के राज्यों में मिशनरियों का जाल निरंतर फैल रहा। असम बच गया है क्योंकि सर्वानंद सोनोवाल एक कुशल प्रशासक हैं। छत्तीसगढ़ झारखण्ड में विकराल धर्मान्तरण का खेल जारी है। राजनीतिक प्रश्रय मिला हुआ है।


इन सभी तथ्यों पर कोई बहस नहीं कर सकता। सब कुछ सामने है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू समापन के निकट हैं। उनकी तो कोई बात ही नहीं है। पर चिन्ता भारतीय समाज की है। उस समाज की जिसकी नयी पढ़ी एक विशुद्ध इडियट बन रही। जिसे अपने सेक्यूलर होने का इतना घमंड है और ऐसी खामखयाली है कि वह सोसाइटी के गेट पर लगे पवित्र भगवा ध्वज को देखकर हांफने, कुलबुलाने लगता है। वह भगवा ध्वज जो हजारों वर्षों से सनातनी सभ्यता का चिह्न है, उसकी आंखों को खटकता है। वह उसे  नोंच कर उखाड़ देना चाहता है। उसके लिए चिट्ठी लिखता है और उसके पिता गर्व से उसे पढ़ाते हैं।


विडम्बना देखिए कि आज की स्कूली शिक्षा ने हिन्दू बच्चों को कितना आत्महीन, कुंठित, धर्मच्युत और छद्मी सेक्यूलर बना दिया है कि वह सोसाइटी को धर्मोपदेश देता है। सेक्यूलरिज्म सिखलाता है । जैसे, उस भगवा ध्वज के लगते ही वहां रहने वाले ईसाई और मुसलमान परिवारों पर कोई संकट आ गया हो। जबकि सत्य यह कि इसी ध्वज ने उन्हें सदियों सम्मान से जीने का अधिकार दिया है। मैं इतिहास में नहीं जाऊंगा। इतिहास खोल कर बैठ गया तो हजार वर्ष की इस क्लान्त हिन्दू सभ्यता की आत्मा पर असंख्य घाव दिखेंगे। रिसते हुए फफोले। केवल ध्वंस, दाह और बर्बरता। वह तो इस हिन्दू समाज की आंतरिक शक्ति ही ऐसी है कि वह उन घावों को धोकर उठ खड़ा हुआ है। संपूर्ण मानवता के इतिहास में ऐसा कोई धर्म या सभ्यता नहीं। किन्तु हमें संकट भांपने की समझ होनी चाहिए। 


हमें जानना चाहिए कि बीते साठ-सत्तर वर्षों में क्या हुआ है। यहां कि डेमोग्राफी कितनी बदल चुकी है। आंधी आने पर शुतुरमुर्ग रेत में अपना सिर गाड़ लेता है, उसे लगता है कि आंधी चली गई। कोई समाज एक ओर से दान देता जाय और प्रतिदान में उसे केवल धोखा, हत्या धर्मान्तरण मिले तो वह भला कब तक दान दे? आत्मा का ऐसा कोई अक्षयपात्र नहीं है। किंतु विडम्बना ! छोटे-छोटे बच्चे हमें सेक्यूलरिज्म सिखलाने लगे हैं। किस हिन्दू समाज को सेक्यूलरिज्म सिखलाया जा रहा? उसे, जो युगों युगों से धरती का सबसे सेक्यूलर प्राणी है! 


धर्म का अर्थ समझ में आता नहीं और ज्ञानोपदेश कैसे-कैसे! ऊपर से उस उपदेश को विद्वानों की शाबाशी।वाह..

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