**बोफोर्स घोटाला: भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण अध्याय**
**परिचय**
बोफोर्स घोटाला, भारतीय राजनीति का एक ऐसा घोटाला है जिसने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। 1980 के दशक में सामने आया यह घोटाला, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासन के दौरान हुआ था। यह घोटाला स्वीडिश कंपनी एबी बोफोर्स द्वारा भारत को तोपें बेचने के अनुबंध से संबंधित था, जिसमें कथित रूप से भारतीय राजनेताओं और रक्षा अधिकारियों को रिश्वत दी गई थी।
**घोटाले की पृष्ठभूमि**
1986 में भारतीय सरकार ने स्वीडिश कंपनी एबी बोफोर्स से 410 होवित्जर तोपें खरीदने का सौदा किया। इस सौदे की कुल कीमत 1,437 करोड़ रुपये थी। हालांकि, 1987 में स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि इस सौदे में बोफोर्स ने भारतीय अधिकारियों और राजनेताओं को लगभग 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी। इस घोटाले का खुलासा होते ही भारतीय राजनीति में हड़कंप मच गया और राजीव गांधी सरकार पर गंभीर आरोप लगे【5†source】【6†source】।
**कानूनी कार्यवाही और आरोप**
घोटाले की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 22 जनवरी, 1990 को एफआईआर दर्ज की। इस मामले में एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्दबो, बिचौलिया विन चड्ढा, और हिंदुजा बंधुओं समेत कई लोगों पर आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप लगे। 1999 में सीबीआई ने इन आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए, लेकिन लंबे समय तक कानूनी कार्यवाही के चलते कई आरोपी या तो फरार हो गए या उनकी मृत्यु हो गई【7†source】।
**न्यायिक निर्णय और विवाद**
2005 में दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदुजा बंधुओं समेत सभी आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया। इसके बाद, 2011 में विशेष सीबीआई अदालत ने ओटावियो क्वात्रोची को भी आरोप मुक्त कर दिया, यह कहते हुए कि इस मामले में पहले ही काफी पैसा खर्च हो चुका है और क्वात्रोची को प्रत्यर्पित करने में और पैसा खर्च करना उचित नहीं है। 2013 में क्वात्रोची की मृत्यु हो गई और इसी दौरान अन्य प्रमुख आरोपी भी मृत्यु को प्राप्त हुए【6†source】।
**राजनीतिक प्रभाव**
बोफोर्स घोटाले ने भारतीय राजनीति पर गहरा असर डाला। इस घोटाले की वजह से 1989 के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी नुकसान हुआ और राजीव गांधी की छवि पर गहरा दाग लगा। इस घोटाले ने भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और इसके बाद से रक्षा सौदों में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग बढ़ गई
**समाप्ति**
बोफोर्स घोटाला भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जिसने न केवल राजनैतिक हलकों में हलचल मचाई बल्कि न्याय व्यवस्था और सार्वजनिक विचारधारा पर भी गहरा प्रभाव डाला। आज भी यह घोटाला चर्चा का विषय बना रहता है और इससे संबंधित कानूनी कार्यवाही और जांच की मांग समय-समय पर उठती रहती है।
**निष्कर्ष**
बोफोर्स घोटाला भारतीय राजनीति का एक महत्वपूर्ण प्रकरण है जिसने न केवल एक सरकार को गिराया बल्कि भारतीय लोकतंत्र में पारदर्शिता और ईमानदारी के महत्व को भी रेखांकित किया। यह घोटाला आज भी एक चेतावनी के रूप में खड़ा है कि कैसे भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता किसी भी राष्ट्र की प्रगति में बाधा डाल सकते हैं।